Global Warming in Hindi
ग्लोवल वार्मिंग (Global Warming) से तात्पर्य वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों की उपस्थिति के कारण पृथ्वी के औसत तापमान में वृद्धि से है, जो दुनिया भर में जलवायु चक्र में परिवर्तन का कारण बन रहा है।
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ग्लोबल वार्मिंग शब्द का प्रयोग अक्सर जलवायु परिवर्तन के स्थान पर इस्तेमाल किया जाता है। ग्लोबल वार्मिंग से अभिप्राय पृथ्वी के औसत तापमान में दीर्घकालिक वृद्धि है। हालांकि यह तापमान में वृद्धि लंबे समय से चल रही है, लेकिन पिछले सौ वर्षों में जीवाश्म ईंधन के जलने के इसमें होने वाली गति बहुत तेज हो गयी है।
जैसे-जैसे मानव आबादी बढ़ी है, वैसे-वैसे जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल की मात्रा भी बढ़ी है। जीवाश्म ईंधन में कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस आदि आते हैं, और उन्हें जलाना “ग्रीनहाउस प्रभाव” के रूप में जाना जाता है।
ग्रीनहाउस प्रभाव (Greenhouse Effect) तब होता है जब सूर्य की किरणें वायुमंडल में प्रवेश करती हैं, लेकिन जब वह किरणें ग्रह की सतह से टकराकर परावर्तित होती है तो वह वापस अंतरिक्ष में नहीं जा पाती है। जीवाश्म ईंधन के जलने से उत्पन्न गैसें गर्मी को वायुमंडल से बाहर नहीं जाने देती हैं।
ये ग्रीनहाउस गैसें कार्बन डाइऑक्साइड, क्लोरोफ्लोरोकार्बन, जल वाष्प, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड हैं। जिससे वायुमंडल में अतिरिक्त गर्मी बने रहने के कारण औसत वैश्विक तापमान में समय के साथ वृद्धि हो रही है। इसे ही ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) के रूप में जाना जाता है।
ग्लोबल वार्मिंग के कारण जलवायु परिवर्तन में असंतुलन पैदा हो गया है। कभी-कभी ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन को परस्पर एक दूसरे स्थान पर उपयोग किया जाता है, हालाँकि दोनों में बहुत अंतर है। जलवायु परिवर्तन का तात्पर्य दुनिया भर में मौसम के पैटर्न में बदलाव से है। ग्लोबल वार्मिंग से जलवायु परिवर्तन होता है। वैज्ञानिक ग्लोबल वार्मिंग और पृथ्वी पर इसके प्रभाव का अध्ययन लगातार कर रहे हैं।
ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव (Effects of Global Warming in Hindi)
ग्लोबल वार्मिंग के निम्नलिखित प्रभाव है –
औसत तापमान में वृद्धि (Average Temperature Rise)
ग्लोबल वार्मिंग के सबसे तात्कालिक और स्पष्ट प्रभावों में से एक दुनिया भर में, तापमान में वृद्धि का होना है। नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (National Oceanic and Atmospheric Administration) के अनुसार, पिछले 100 वर्षों में औसत वैश्विक तापमान में लगभग 1.4 डिग्री फ़ारेनहाइट (0.8 डिग्री सेल्सियस) की वृद्धि हुई है।
ग्लेशियरों का पिघलना (Melting of Glaciers)
ग्लोबल वार्मिंग के कारण दुनिया भर के ग्लेशियरों का पिघलना लगातार जारी है। ग्लेशियरों के पिघलने से मानव जाति और पृथ्वी पर रहने वाले जानवरों के लिए बहुत सारी समस्याएं पैदा हो रही हैं। ग्लेशियरों के पिघलने से समुद्र का स्तर बढ़ रहा है जिससे बाढ़ जैसी समस्याओं से दो चार होना पड़ रहा है। समुद्र के स्तर को बढ़ाने के अलावा, इससे जानवरों की कई प्रजातियों का जीवन अस्तित्व भी खतरे में है इस प्रकार पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन में बाधा उत्पन्न हो रही है।

जलवायु परिवर्तन (Climate Change)
अनियमित होते मौसम चक्र हम पूरी दुनिया में प्रभाव देख रहे है। ध्रुवीय और उप-ध्रुवीय क्षेत्रों में वर्षा के रूप में बढ़ी हुई वर्षा पहले ही देखी जा चुकी है। ग्लोबल वार्मिंग के और बढ़ने से और तेजी से वाष्पीकरण होगा जिससे अधिक बारिश होगी। जिससे पेड़ पौधे और पशु पक्षी इस तेजी बढ़ी हुई वर्षा के अनुकूल खुद को ढाल नहीं सकते और बहुत से पौधों की प्रजातियां खत्म हो सकती है और जानवर अन्य क्षेत्रों में पलायन कर सकते हैं, जिससे पूरा पारिस्थितिकी तंत्र बुरी तरह प्रभावित होगा।
तूफानों में वृद्धि (Increase in Storms)
जैसे-जैसे महासागरों का तापमान बढ़ेगा, आने वाले तूफानों के तेज और विकराल होने की प्रबल संभावनाएं है जो जन जीवन को एक पल में तहस नहस करने की क्षमता रखते है। ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि के कारण, समुद्र का पानी गर्म हो जाता है और यह आसपास की हवा को गर्म कर देता है, जिससे तूफान पैदा होते हैं।
समुद्र के स्तर में वृद्धि (Rise in Sea level)
ध्रुवीय बर्फ के अप्रत्याशित रूप से पिघलने और वायुमंडल में कम पानी के वाष्पीकरण के कारण समुद्र का स्तर लगातार बढ़ रहा है। जिससे विश्व के कुछ तटीय देश और शहर समुद्र में समा रहे हैं और वहां पर आ रही विनाशकारी बाढ़ अभी से ही इतिहास में अपनी छाप छोड़ने लगी है।
कृषि पर प्रभाव (Effect on Agriculture)
ग्लोबल वार्मिंग से सबसे ज्यादा अगर कुछ प्रभावित होगा तो वो कृषि होगी। आने वाले वर्षों में इसका असर दिख सकता है। जैसे-जैसे वैश्विक तापमान बढ़ेगा, पौधों का जीवित रहना कठिन होता जायेगा और जिससे अन्न की पैदावार पर फर्क पड़ेगा। अन्न ही मनुष्य के भोजन का प्रमुख स्रोत हैं और इसके परिणामस्वरूप भोजन की कमी हो सकती है। भोजन की कमी से कुछ देशों में युद्ध और संघर्ष हो सकते हैं।

बार-बार जंगल की आग (Frequent Wildfires)
हर साल अधिक मात्रा में जंगल की आग लगातार बढ़ती जा रही है। जिस अनुपात में जंगल में आग लगने की दर बढ़ रही है उससे आने वाले समय में यह गति और तीव्र हो जाएगी। हर बार जंगल में आग लगने से कार्बन डाइऑक्साइड भारी मात्रा में निकलती है। जिससे वहां जीवन जीना बहुत मुश्किल हो जाता है इसमें सबसे ज्यादा जीव जंतुओं को नुकसान उठाना पड़ता है।
निष्कर्ष (Conclusion)
कई शोधकर्ता, इंजीनियर और पर्यावरणविद (Environmentalists) ग्रह के बढ़ते तापमान के और जलवायु में हो रहे परिवर्तन के बारे में गहरी चिंता व्यक्त कर रहे हैं। बिजली उत्पादन के लिए जीवाश्म ईंधन का लगातार उपयोग किया जा रहा है। इन ईंधनों के जलने से कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड जैसी गैसें निकलती हैं जो ग्लोबल वार्मिंग का कारण बन रही हैं।
वनों की कटाई भी गर्म होते तापमान में योगदान दे रही है। ग्लोबल वार्मिंग का खतरा लगातार पृथ्वी के पर्यावरण को बड़ा नुकसान पहुंचा रहा है। अधिकांश लोग अभी भी ग्लोबल वार्मिंग से अनजान हैं और आने वाले वर्षों में भी इसे एक बड़ी समस्या नहीं मानते हैं।
अधिकांश लोगों को यह समझ में नहीं आ रहा है कि वे वर्तमान में ग्लोबल वार्मिंग से होने वाले अनेकों प्रभावों का अनुभव कर रहे हैं। यह पारिस्थितिक तंत्र को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है और आने वाले समय में और तीव्र गति से करेगा और पारिस्थितिक संतुलन को बिगाड़ेगा।